बस्ता कितना भारी है,
पढ़ना भी लाचारी है।
घर में रहना मजबूरी है ,
स्कूल जाना भी जरूरी है ।
पढ़ो- पढ़ो बस पढ़ते रहो घरवालों का नारा है।
अगर खेलने हम सब जाते कहलाते आवारा हैं ।
सोचा था स्कूल जाएंगे ,
पढ़ लिख कर शोहरत कमाएंगे।
बस्ते में किताब ले जाएंगे ,
हम भी कुछ बनकर दिखलाएंगे। लेकिन सपने टूट गए,
हमसे अपने रूठ गए।
मित्र हमारे छूट गए,
देवी हमसे रूठ गए।
भगवान बस्ता हल्का कर दो ।
हम पर थोड़ी कृपा कर दो
विनती यह हमारी है,
बस्ता कितना भारी है ।
बस्ता कितना भारी है।
नाम-हर्षित नैनवाल
कक्षा-8