ना हमारा वेश देख ना तू बिखरे केश देख,
न हमार हाल देख है जो बेहाल देख,
हम पर न उपहास कर,
सकल है जो प्रयास कर।
क्यूं की जेब भरी या खाली हो बस पास संतुष्टि की प्याली हो।
फिर हो चाहे गगन आकाश सकल या पग के नीचे पाताल पतन , चाहे हो उन्माद विकल या फिर हो अवसाद प्रबल।
हम चैन की नींद ही पाते हैं,
कल की चिंता में नहीं,
आज मैं जी जाते हैं।
धन की बात धनी ही जाने,
हम माया को ना पहचाने,
हो धूप छांव या सर्द गर्म,
हम राह पड़े कंकड़ हैं।
हम तभी नजर में छाते हैं,
जब वे बाहर से आते हैं ।
नए फरमान आते हैं,
रातों-रात हो जाते हैं ,
खूब प्रशंसा पाते हैं,
पर आंखों पर बंधी पट्टी को, किसने ही खोला है,
हम जैसे कंकड़ो को,
माला में किसने ही पिरोया है।
दो पल के यह प्राण है ,
यदि इसमें भी अभिमान है,
तो यह जान नहीं बेजान है।
यह मान नहीं अपमान है।
यह पुण्य नहीं पर पाप है
यही सबसे बड़ा अभिशाप है
अभिमान तो जैसे आंधी है यदि आँखों पर ये भारी है ,
तो भगवान भी यदि आएंगे,
तुम को समझाना पाएंगे ,
भगवान से भिड़ जाओगे,
पूर्ण के पीछे -पीछे,
थोड़ा भी नहीं पाओगे ।
रावण दुर्योधन बन जाओगे ।
इसलिए मान भले ही आधा हो, पर इसमें ना कोई बाधा हो,
फिर श्याम भी बंसी बजाएंगे।
हरि भी चलकर आएंगे।
झूठे बेर भी खाएंगे।
सारथी
बन जाएंगे, बन जाएंगे।।।।
नाम -शुभ दुम्का
कक्षा-12