माथे में बिंदिया, मांग में सिंदूर ,
होठों पर लाली ,आंखों पर नूर,
बदन पर साड़ी ,सिर पर घुंघट का समावेश था, शायद पहले नारी का यही वेश था।
मगर आज घुंघट और साड़ी क्यों त्याग दिए सब बारी-बारी फैशन की भीड़ में कहां गई लज्जा की नारी।
हम क्यों भूल गए सूरज आज भी पूरब से उगता है अगर नहीं भूले तो हमारा सर क्यों पश्चिम को झुकता है क्यों फैलगई घर घर अर्धनग्नता की बीमारी इस फैशन की भीड़ में कहां गई लज्जा की नारी
कहीं कुछ कपड़ों में अंग प्रदर्शन कहीं बिन कपड़ों के नग्न प्रदर्शन हर बाला का फैशन दर्पण और फैशन में नारी का मर्दन कहां गई नारी की चीर और कहां गए द्वापर के बनवारे इस फैशन की भीड़ में कहां गई लज्जा की नारी
जो दूजे की लाठी का सहारा ले यह नारी कोई अपंग नहीं अब निकलना होगा इस दलदल से क्योंकि यह सच है कोई व्यंग नहीं जो भारतीय नारी की धमनियों में बहता है वह खून है कोई रंग नहीं क्योंकि अंगों को शोभित वस्त्र करते हैं वस्त्रों को शोभित अंग नहीं।
धन्यवाद
कृत-सोम्या मठपाल