आजकल मौसम की भी क्या बात करें, अभी तो आकाश साफ था कि अचानक ही अज्ञात दिशा से मेघ आ गए हैं और साथ ही में हवा भी चलने लगी है। इस दृश्य को देख ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों भाई-बहन हों और अभी-अभी झगड़ कर आपस में सुलह हुई है। गलियों में लोग अपने घरों की खिड़कियों-दरवाजों को खोल कर देख रहे हैं कि मेघ अभी आकाश में कहाँ तक पहुँचे हैं।
परंतु यह क्या? अचानक ही हवा ने अपनी तीव्र गति ले ली है, जैसे कि हवा की ट्रेन छूट रही हो। पेड़ भी हवा की तीव्र गति से झुकने लगे हैं जैसे कि हवा का स्वागत कर रहे हों।
लोग अपने सिरों पर घूँघट कर रहे हैं ताकि आँखों में धूल न चली जाए और यह क्या नदी की लहरें भी थिरकने लगी हैं।
यह तो किसी अजूबे से कम नहीं है कि सौ साल पुराने पीपल के पेड़ ने भी अपना घमंड तोड़ दिया है क्योंकि उसने भी हवा के सामने झुक कर हार मान ली है। देखते ही देखते क्षितिज पर बादल छा गए हैं, बिजली कड़कने लगी है और यह क्या बारिश भी होने लगी है और इसी के साथ कुछ लोगों की मान्यता को भी ठेस पहुँचने लगी है क्योंकि वे सोच रहे थे कि जो गरजते हैं वो बरसते कहाँ हैं?
परन्तु वर्षा का कोई भरोसा नहीं कि कब आ जाए? कैसे आ जाए? न मुझे पता न तुम्हें पता? बस कुछ संकेत हैं। जो संकेत समझते हैं वही मेघों की भाषा भी समझते हैं। अब यह तुम पर है कि तुम जीवन में मिलने वाले उन संकेतों को अनसुना, अनदेखा करते हो या उन संकेतों को समझकर जीवन में आगे बढ़ते हो।
लेखिका- नम्रता कांडपाल
कक्षा 9